बुरहानपुर में भारतीय किसान संघ का हल्ला बोल: लैंड पुलिंग एक्ट को रद्द करने की मांग, आंदोलन की चेतावनी
बुरहानपुर। मध्यप्रदेश में एक बार फिर किसानों का लैंड पुलिंग एक्ट को रद्द करने को लेकर सब्र टूटता दिखाई दे रहा है।
आज भारतीय किसान संघ (BKS) मालवा प्रांत, बुरहानपुर इकाई ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम एडिशनल कलेक्टर वीर सिंह को ज्ञापन सौंपा।
इस ज्ञापन में किसानों ने लैंड पुलिंग गजट नोटिफिकेशन को तुरंत वापस लेने की मांग की है।
साथ ही संगठन ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने मांगें नहीं मानीं तो 18 नवंबर से उज्जैन में “घेरा डालो, डेरा डालो” आंदोलन शुरू किया जाएगा।
📜 क्या है मामला: क्यों विरोध कर रहे हैं किसान?
भारतीय किसान संघ के नेताओं के मुताबिक, सरकार द्वारा लैंड पुलिंग एक्ट के तहत उज्जैन के सिंहस्थ क्षेत्र (TDS 8, 9, 10, 11) में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की गई है।
किसानों का कहना है कि यह अधिनियम उनकी भूमि, आजीविका और अधिकारों पर सीधा प्रहार है।
किसान संघ की प्रमुख मांगें
- मध्यप्रदेश से लैंड पुलिंग एक्ट पूरी तरह समाप्त किया जाए।
- उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र से जारी गजट नोटिफिकेशन (TDS 8, 9, 10, 11) तुरंत रद्द किया जाए।
- सिंहस्थ 2028 का आयोजन पूर्व की तरह किया जाए, बिना किसानों की भूमि लिए।
- किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएं।
📢 ज्ञापन सौंपने के दौरान क्या हुआ?
आज दोपहर किसान ज्योतिबा फुले सब्जी मंडी, बुरहानपुर कार्यालय पर बड़ी संख्या में किसान और कार्यकर्ता इकट्ठा हुए।
उपस्थित प्रमुख पदाधिकारी:
- संतोष महाजन – जिला अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ
- इंद्रपाल महाजन – जिला मंत्री
- वसंत पाटिल – सह मंत्री
- उत्तम महाजन, राजू प्रजापति, सुभाष पाटिल, भुवान सिंह चौहान, योगेश प्रजापति, उज्जवल पाटिल आदि।
प्रवीण चौधरी (मीडिया प्रभारी) ने मीडिया से बातचीत में कहा:
“हमारी लड़ाई किसानों की जमीन और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए है। जब तक सरकार लैंड पुलिंग एक्ट खत्म नहीं करती, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।”
🎯 किसान संघ की चेतावनी: 18 नवंबर से बड़ा आंदोलन
भारतीय किसान संघ ने साफ कहा है कि यदि सरकार ने संवाद शुरू नहीं किया या गजट नोटिफिकेशन वापस नहीं लिया,
तो 18 नवंबर से उज्जैन कमिश्नर कार्यालय पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया जाएगा।
“घेरा डालो, डेरा डालो” आंदोलन तब तक चलेगा जब तक सरकार किसानों की मांगें नहीं मान लेती।
इस आंदोलन में बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, देवास, उज्जैन सहित मालवा प्रांत के 18 जिलों के किसान भाग लेंगे।
🧩 समझिए — क्या है लैंड पुलिंग एक्ट?
लैंड पुलिंग क्या होता है?
सरल शब्दों में, लैंड पुलिंग एक ऐसी योजना है जिसमें किसानों की जमीनें विकास परियोजनाओं के लिए अस्थायी रूप से ली जाती हैं।
सरकार या विकास प्राधिकरण उस जमीन का एक हिस्सा अपने पास रखकर बाकी जमीन को विकसित रूप में किसानों को लौटाता है।
किसानों की आपत्ति क्यों?
- किसानों का कहना है कि उन्हें बाजार मूल्य से कम मुआवजा मिलता है।
- जमीन का बड़ा हिस्सा सरकारी उपयोग के लिए रख लिया जाता है।
- भूमि स्वामित्व के अधिकार कमजोर हो जाते हैं।
- योजना में परामर्श और पारदर्शिता की कमी है।
⚖️ किसान नेताओं का तर्क
जिला अध्यक्ष संतोष महाजन ने कहा:
“लैंड पुलिंग एक्ट किसानों की जमीन छीनने का कानून है। यह किसान विरोधी नीति है जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।”
सह मंत्री वसंत पाटिल ने कहा:
“किसान आज मक्का, सोयाबीन, कपास और केला जैसी फसलों में लागत नहीं निकाल पा रहे हैं। ऊपर से ऐसे कानून उनकी परेशानियाँ और बढ़ा देंगे।”
उनका आरोप है कि सरकार किसानों की आवाज़ को सुनने के बजाय मूकदर्शक बन गई है।
🌾 किसानों की मौजूदा आर्थिक स्थिति
भारत में किसानों की आमदनी पहले ही संकट में है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट बताती है कि:
- औसत किसान परिवार की मासिक आय ₹10,218 है।
- इसमें से लगभग ₹6,000 खर्च कृषि इनपुट पर ही हो जाते हैं।
- 70% किसान कर्ज में डूबे हुए हैं।
ऐसे में भूमि अधिग्रहण या लैंड पुलिंग जैसी योजनाएँ किसानों के लिए आर्थिक असुरक्षा पैदा करती हैं।
🌐 अन्य राज्यों में भी विवाद
लैंड पुलिंग एक्ट को लेकर केवल मध्यप्रदेश ही नहीं,
बल्कि हरियाणा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में भी विरोध हुआ है।
- तेलंगाना (2018): किसानों ने अमरावती कैपिटल प्रोजेक्ट में लैंड पुलिंग के खिलाफ आंदोलन किया था।
- हरियाणा: कुछ क्षेत्रों में किसानों ने मुआवजे की दर बढ़ाने की मांग की थी।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि यदि संवाद और पारदर्शिता नहीं होगी, तो लैंड पुलिंग का विरोध पूरे देश में बढ़ सकता है।
🏛️ सरकार का रुख
सरकार का कहना है कि लैंड पुलिंग योजना शहरी विकास और अधोसंरचना सुधार के लिए आवश्यक है।
इसके माध्यम से –
- सड़कें, पार्क, आवासीय योजनाएँ,
- धार्मिक आयोजन स्थल (जैसे सिंहस्थ),
- और औद्योगिक ज़ोन विकसित किए जा सकते हैं।
लेकिन किसानों का सवाल है:
“अगर विकास किसानों की जमीन और भविष्य की कीमत पर होगा, तो ऐसा विकास किसके लिए?”
🌾 किसान संगठनों का एकजुट होना
यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय किसान संघ के साथ-साथ भारतीय मजदूर संघ (BMS) और अन्य सामाजिक संगठन भी इस आंदोलन के समर्थन में हैं।
किसान संघ ने आज के दिन को संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी जी की जयंती के रूप में मनाया और इसे “किसान एकता दिवस” का रूप दिया।
📈 विशेषज्ञों की राय: समाधान की राह क्या है?
1. भूमि सुधार विशेषज्ञों का सुझाव:
- भूमि अधिग्रहण या लैंड पुलिंग से पहले जनसुनवाई और पारदर्शी मुआवजा नीति लागू की जाए।
- हर किसान को उसकी जमीन के मूल्य के बराबर विकसित भूखंड या शेयर दिया जाए।
2. अर्थशास्त्रियों की राय:
- यदि किसानों को भरोसे में लेकर नीति बनाई जाए, तो लैंड पुलिंग से साझा विकास मॉडल बन सकता है।
- अन्यथा यह सरकार और किसानों के बीच संघर्ष का कारण बनेगा।
📊 लैंड पुलिंग एक्ट: फायदे बनाम नुकसान
| पहलू | संभावित फायदा | किसानों की आशंका |
|---|---|---|
| विकास योजनाएँ | शहरों में योजनाबद्ध विस्तार | जमीन का मूल्य घट सकता है |
| मुआवजा मॉडल | नकद और भूखंड दोनों रूप में लाभ | बाज़ार मूल्य से कम भुगतान |
| भूमि उपयोग | बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर | परंपरागत खेती का अंत |
| पारदर्शिता | GPS आधारित सर्वे | निर्णय बिना जनसहमति |
🧠 किसानों के लिए सुझाव
- गजट नोटिफिकेशन को ध्यान से पढ़ें — हर किसान को अपनी जमीन से जुड़ी जानकारी समझनी चाहिए।
- कलेक्टर कार्यालय से संपर्क करें — यदि जमीन प्रभावित क्षेत्र में आती है तो अपने दस्तावेज़ अपडेट रखें।
- कानूनी सलाह लें — भूमि अधिकार अधिवक्ता से राय लें।
- संगठित रहें — आंदोलन शांतिपूर्ण और रचनात्मक तरीके से करें।
बुरहानपुर में किसानों का आंदोलन सिर्फ एक क्षेत्रीय विरोध नहीं, बल्कि भूमि अधिकारों और कृषि नीति पर बड़ा सवाल है।
लैंड पुलिंग एक्ट पर उठी यह आवाज़ आने वाले दिनों में राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
भारतीय किसान संघ का संदेश साफ है —
“हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन किसान की जमीन और सम्मान से समझौता नहीं करेंगे।”
यदि सरकार संवाद का रास्ता अपनाती है,
तो यह विवाद सुलझ सकता है और किसान-हितैषी विकास मॉडल बन सकता है।
अन्यथा, 18 नवंबर से शुरू होने वाला आंदोलन प्रदेश की सियासत और नीति दोनों को हिला सकता है।