बुरहानपुर
किसानों के लिए उद्यानिकी फसलों की चुनौतियां, समाधान एवं संभावनाओं पर आधारित दो दिवसीय कृषि विज्ञान मेले के द्वितीय दिवस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विधायक एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव के नेतृत्व में सरकार जैविक खेती, प्राकृतिक कृषि एवं उन्नत कृषि तकनीकों को बढ़ावा देे के लिए निरंतर प्रयासरत है। इसी दिशा में यह दो दिवसीय कृषि विज्ञान मेला कृषकों को प्राकृतिक खेती, जैविक खेती, उन्नत कृषि यंत्रों एवं नवीन कृषि तकनीकों की विस्तृत जानकारी देशभर से आए वैज्ञानिकों से परिचर्चा के माध्यम से दी गई। साथ ही तकनीक प्रशिक्षण के माध्यम से कृषकों को अधिक उत्पादन एवं समृद्ध खेती के लिए प्रेेरित किया गया।
श्रीमती अर्चना चिटनिस ने कहा कि बुरहानपुर के हमारे किसानों ने अपनी मेहनत से कई रिकार्ड कायम किए है। केला बुरहानपुर की पहचान है। यह सब संभव हुआ, क्योंकि आप टेक्नोलॉजी का उपयोग करते है और नवीनतम विधियों को भी अंगीकृत करते है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने यह बात बार-बार कही कि फस्लों का विविधिकरण करों, केवल परंपरागत फसलें नहीं, फलों की खेती, फूलों की खेती, मसालों की खेती भी जरूरी है। श्रीमती चिटनिस ने किसानों से आग्रह करते हुए कहा कि हम धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती की ओर बढे़, ताकि हमारी धरती के साथ-साथ मनुष्य भी स्वस्थ रह सके। गाय, गौमूत्र के उपयोग से बनने वाले कीटनाशक का उपयोग करके किसान केमिकल कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से फसलों को बचा सकते है।
कृषि विज्ञान केन्द्र इंदौर के डॉ.डी.के.मिश्रा द्वारा पपीता, तरबूज, प्याज व मिर्ची उत्पादन की तकनीक पर कृषक वैज्ञानिक परिचर्चा की। उन्होंने कहा कि किसान बाजार की मांग अनुसार फसलों का उत्पादन करे, जिससे अधिक आय प्राप्त कर सकते है। वर्तमान में प्रचलित खेती के साथ किसान बंधु चकुंदर, गाजर, मीठा नीम, सुरजना, धनूरा और बेलपत्र की खेती कर सकते है। नर्सरी वाली फसलें जैसे प्याज, लहसन में सल्फर का उपयोग अवश्य करें। मिर्ची में लगने वाले वायरस के रोकथाम नर्सरी अवस्था में ही कर सकते है। इसके लिए मिर्ची फसलों की नर्सरी में मच्छर दानी एवं प्लॉस्टिक नेट का उपयोग अवश्य करें।
सलिहा डेट्स तमिलनाडु के निजामुद्दीन ‘‘जिले में खजूर की खेती की संभावनाओं‘‘ ने किसानों के साथ संवाद किया। उन्होंने कहा कि खजूर की खेती रेतीली, लाल मिट्टी, जल निकासयुक्त वाली मृदा में आसानी से की जा सकती है। खजूर का पौधा एक एकड़ में 76 पौधे आते है। शुरूआत दौर में 10 पौधे लगाकर किसान एक पौधे से 10 हजार रूपए प्रति पौधे से लाभ अर्जित कर सकते है। खजूर की खेती के लिए कम व्यय व कम लागत से अधिक लाभ कमा सकते है। इसमंे कीट व रोग कम लगते है। साथ ही खजूर की खेती में अंतर्व्रतीय फसलें जैसे प्याज, तरबूज और सब्जियां लगाकर अतिरिक्त लाभ ले सकते है।
केन्द्रीय निम्बू वर्गीय अनुसंधान नागपुर के वैज्ञानिक डॉ.दर्शन एम कदम ने उद्यानिकी फसलों की चुनौतियों, समाधान एवं संभावनाओं (निम्बू, संतरा एवं किन्नू) ने विस्तार से किसानों को जानकारी देते हुए कहा कि नींबूवर्तीय फसलों में भूमि का चयन मृदा पीएच के साथ-साथ रोग मुक्त मातृ पौधों का चयन अवश्य करें।
जैन इरिगेशन सिस्टम प्रा.लि.जलगांव के वैज्ञानिक डॉ.के.बी. पाटिल ने केला उत्पादन की आधुनिक तकनीक एवं कीट बीमारियों से सुरक्षा विषय पर किसानों से परिचर्चा की। उन्होंने कहा कि केले में लगने वाले घातक रोग, फ्यूजेरियम आक्सीकोरिया क्यूबेनस विल्ट जो कि मृदा जनित रोग है। जिसमें पौधे के पत्ते पीते तथा तना बीच से कट जाता है। इससे उत्पादन में काफी कमी आती है। इस रोगों के निदान के लिए किसान अपने केला फसल बुवाई अगस्त के अंतिम समय में से दिसंबर तक कर सकते है। साथ ही फसल चक्र में पपीता, काबूली चना लगा सकते है। जिससे रोग में काफी हद तक कमी की जा सकती है।
कार्यक्रम में जनपद पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि प्रदीप पाटिल, शाहपुर नगर परिषद अध्यक्ष प्रतिनिधि वीरेन्द्र तिवारी, जिला पंचायत सदस्य किशोर पाटिल, दिलीप पवार, चिंतामन महाजन, मुकेश शाह, अरूण पाटिल, डॉ.सूर्यवंशी, देवानंद पाटिल, नितीन महाजन एवं गफ्फार मंसूरी सहित अन्य जनप्रतिनिधि व कृषकगण उपस्थित रहे